Sunday 4 December 2011

क्यूँ .. आखिर क्यूँ ?



क्या मेरी बिंदिया में तुमने
सूरज को छिपा रखा था ?
क्या मेरे कंगन से तुमने
चाँद को तराशा था ?
क्या मेरी खुशबु से अपनी
सांवली रात को महकाया था ?
क्या मेरी आँखों से तुमने
अपने घर का दिया जलाया था ?
क्या मेरी पायल की आवाज़ से
तुमने अपने अश्कों को बांधा था ?

पर क्यूँ .. मैं तो वहीँ थी
हरदम तुम्हारे आस-पास
फिर क्यूँ तुमने .. मुझे नहीं पुकारा ?
फिर क्यूँ मेरी यादों से
अपने मकां को सजाया ?
फिर क्यूँ तुमने अपने ख्वाबों को बस
ख्वाब ही रहने दिया ?

क्यूँ .. आखिर क्यूँ ?

गुंजन
9/9/11