क्या मेरी बिंदिया में तुमने
सूरज को छिपा रखा था ?
क्या मेरे कंगन से तुमने
चाँद को तराशा था ?
क्या मेरी खुशबु से अपनी
सांवली रात को महकाया था ?
क्या मेरी आँखों से तुमने
अपने घर का दिया जलाया था ?
क्या मेरी पायल की आवाज़ से
तुमने अपने अश्कों को बांधा था ?
पर क्यूँ .. मैं तो वहीँ थी
हरदम तुम्हारे आस-पास
फिर क्यूँ तुमने .. मुझे नहीं पुकारा ?
फिर क्यूँ मेरी यादों से
अपने मकां को सजाया ?
फिर क्यूँ तुमने अपने ख्वाबों को बस
ख्वाब ही रहने दिया ?
क्यूँ .. आखिर क्यूँ ?
गुंजन
9/9/11
wah gunjan ji .bahut umda.........
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ReplyDelete♥
आदरणीया गुंजन जी
सस्नेहाभिवादन !
आपके ब्लॉग पर आ'कर बहुत ख़ुशी हुई है :)
आपकी अन्य रचनाओं सहित प्रस्तुत रचना भी प्रभावित करती है -
क्या मेरी बिंदिया में तुमने
सूरज को छिपा रखा था ?
क्या मेरे कंगन से तुमने
चाँद को तराशा था ?
क्या मेरी खुशबु से अपनी
सांवली रात को महकाया था ?
बहुत सुंदर भावप्रवण पंक्तियां हैं !
कविता अपनी सही दिशा में आगे बढ़ी है …
मैं तो वहीं थी
हरदम तुम्हारे आस-पास
फिर क्यूँ तुमने .. मुझे नहीं पुकारा ?
फिर क्यूँ मेरी यादों से
अपने मकां को सजाया ?
फिर क्यूँ तुमने अपने ख्वाबों को बस
ख्वाब ही रहने दिया ?
क्यूँ .. आखिर क्यूँ ?
वाह वाऽऽह… !
समय निकाल कर मेरे ब्लॉग्स पर भी आइएगा :)
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeletesaral shabdon mein sundar kavita
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteसादर...
शायद कोई मजबूरी रही हो ... लजवाब रचना ...
ReplyDeletekyun itna achcha likhte ho...
ReplyDelete:)))))
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 28 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteकुछ ख्वाबों को ख़्वाब रहने दो
ReplyDeleteतुमसे जो ना कह पाये वो बात कहने दो
अधूरी तो बहुत सी बातें हैं
लेकिन इन प्रश्नों को आज रहने दो.....
मेरी तरफ से चन्द लाइने
बहुत खूबसूरत लेखन
बहुत सुंदर कोमल भावनाओं से पूर्ण
ReplyDeleteहर क्यूँ का जवाब भी कहाँ होता है...बहुत सुन्दर रचना...होली की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteआखिर क्यों ? बस यही प्रश्न गुंजरित हो रहा
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