जाने किन हाथों से लिखी हैं
किस्मत हमारी
तुम अलग ..... मैं अलग
जी रहे हैं दो किनारे से
बेतरतीब, बिखरे हुए
जाने किसकी उँगलियों पर
कठपुतली बन
नाचते हुए
_______
ढल जाना चाहती हूँ
तुम्हारे आकार में
घुल जाना चाहती हूँ
तुम्हारे प्रकार में
नदी का छिछला किनारा हूँ
कहीं बह ना जाऊँ
कागज़ पर बहता हुआ रंग हूँ
कहीं बदरंग ना हो जाऊँ.......
समेट लो मुझे अपनी बाँहों में
ज़ब्त कर लो मुझे अपनी साँसों में
कहीं न जाने देने के लिए
किसी और ही रंग में
ढल जाने के लिए ....
गुंजन
१०/९/११
pyaar ka bahut sundar ahsaas hai is kavita mein...
ReplyDeletebahut khoob...
आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
ReplyDeleteजय माता दी..
♥
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना है … बधाई ! आभार !
आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
भावों की सुन्दर गुंजन है आपकी
ReplyDeleteइस अनुपम प्रस्तुति में.
नवरात्रि की शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,गुंजन जी.
madhur bhaw.......
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