कभी उथला किनारा
बन जाती हूँ - मैं
तो कभी खुद ही में
गहरी हो जाती हूँ - मैं
कभी बाढ़ बन
उफ़न उफ़न आती हूँ - मैं
तो कभी भंवर बन
खुद ही में समाती हूँ - मैं
इक नदी हूँ - मैं
जिसकी धारा हो तुम
इक नदी हूँ - मैं
जिसका किनारा हो तुम
क्या अपनी बाहों में लोगे मुझे .. ?
क्या अपना - आप दोगे मुझे .. ?
गुंजन
१५/९/११
बहुत ही सुन्दर शब्दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...
ReplyDeleteBahut sundar kavita
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आग्रह का भाव लिए रचना..दीवाली की शुभकामनायें.
ReplyDeleteमेरी कविताओं के नए पोस्ट पर आपका स्वागत है..
www.belovedlife-santosh.blogspot.com
nadi to samandar kee taraf bina ruke badhti hai... kisi kee nahi sunti
ReplyDeleteबहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!
yeh to aapne meri paribhasha dedi,Gunjan
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