Saturday 22 October 2011

इक नदी हूँ मैं



कभी उथला किनारा
बन जाती हूँ - मैं
तो कभी खुद ही में
गहरी हो जाती हूँ - मैं
कभी बाढ़ बन
उफ़न उफ़न आती हूँ - मैं
तो कभी भंवर बन
खुद ही में समाती हूँ - मैं
इक नदी हूँ - मैं
जिसकी धारा हो तुम
इक नदी हूँ - मैं
जिसका किनारा हो तुम

क्या अपनी बाहों में लोगे मुझे .. ?
क्या अपना - आप दोगे मुझे .. ?

गुंजन
१५/९/११

6 comments:

  1. बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों....बेहतरीन भाव....खूबसूरत कविता...

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर आग्रह का भाव लिए रचना..दीवाली की शुभकामनायें.

    मेरी कविताओं के नए पोस्ट पर आपका स्वागत है..
    www.belovedlife-santosh.blogspot.com

    ReplyDelete
  3. nadi to samandar kee taraf bina ruke badhti hai... kisi kee nahi sunti

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    शुक्रिया ..इतना उम्दा लिखने के लिए !!

    ReplyDelete